साल बहुत उम्दा नही तो बुरा भी नही गुजरा।अच्छा और संतुलित रहा। ज़िंदगी और समय का लेखा-जोखा बिल्कुल एक्यूरेट होता है।न इंच भर ऊपर न नीचे। बस बीच की इंच भर में ज़िंदगी की पेंडुलम समय के साथ हिलती-डुलती है। बस इंसानों को संतुलन ही सीखना होता है। जिसने ज़िंदगी को संतुलित करना सीख लिया मतलब…
ज़िंदगी जीना आ गया, फिर उसे आप कभी हरा नही सकते।न भावनात्मक रुप से न शारीरिक रुप से और न ही बौद्धिक रुप से। वही इंसान हर बाजी जीतता है। ऐसे लोग समय की महत्ता को आदर भाव देते हैं,परिस्थिति को समझते हैं और हर छोटे बड़े कार्यो में अपना एफर्ट निःस्वार्थ लगाते हैं। ईमानदारी और निःस्वार्थ होना आज के वक़्त का बड़ा महंगा शौक है।
निःस्वार्थ … यह हल्का शब्द नही है बल्कि यह बहुत ताकतवर शब्द है। आगे की जिंदगी में या दशकों बाद यह शब्द और भी मजबूत और ताकतवर होकर उभरेगा…और इसी शब्द को जीने वाले लोग हर चीज हासिल करेंगे,और बेहद ख़ुशमिजाजी के साथ ज़िंदगी का लुत्फ उठाएंगे। आने वाले सबसे कठिन दिनों में यही शब्द इंसानों की बेहतर पहचान कराएगा।अवांछनीय रुप से कोई भी व्यक्ति आपका फायदा उठाने से घबराएगा।
हर नए साल में लोग संकल्प करते हैं।कुछ अच्छी बुरी आदतों को छोड़ने और अच्छी आदतों को अपनाने की भरसक प्रयास करते हैं। मैंने आज तक कोई संकल्प नही किया। यह मुझे प्रेशर देने वाला कठिन काम लगता है। मन मार कर कामधाम नही हो सकता।और मन मार कर संकल्प पूरे भी नही होते।बहुतों ने पिछले बरस निश्चय किया था। कभी ड्रिंक नही करेंगे, कभी रेड वाइन नही चखेंगे।स्मोकिंग नही करेंगे। किसी का संकल्प यह नही था,कि सामाजिक हितार्थ कुछ कार्य करेंगे।
महीने बाद ही सारे संकल्प धराशायी हो गये। अब उनका विचार है कि ड्रिंक करना है,डांस करना है, और झेंप भी हटानी है। अर्थात ज़िंदगी जीना है।लोग इसे अकसर नेगेटिव वे में सोचते हैं।ज़िंदगी जीना मतलब अय्याशी और बुरी लतों में उलझना..! इस सोच के साथ ज़िंदगी जीने वाले भी समाज में बहुत हैं।
किंतु ज़िंदगी जीने का अर्थ सलीके से अपनी दिल दिमाग की चाबी अपने हाथ में कसकर पकड़े रहना है,ताकि दूसरा आपकी ज़िन्दगी में घुसपैठ कर आपके भीतर के संसार को डैमेज न कर सके।इतनी मजबूती तो होनी ही चाहिए।
ओहो, समय लगेगा….अच्छी आदतें डेवलप होने में भी वक्त लगता है। वो कहावत है ना-“जब सारी बुरी आदतों से गुजर चुके होते हैं। आस-पास उसका दुष्प्रभाव देख चुके होते हैं। व्यक्ति में बदलाव आना शुरू हो जाता है।” बुरी आदतों को पनपने में तो सेकंड भर नही लगता, बुरी आदतें काफी आकर्षक होती है।
जल्दी खींचती हैं। परिपक्व होना कितना जरूरी है। देखिए, जो व्यक्ति परिपक्व होता है वह अच्छे और बुरे के बीच अटकी पैनी लकीरों को भी देख लेता है। वह संतुलन साधने की कला से भली भाँति वाकिफ़ हो जाता है।दर्द से जो भी गुजरा होगा।वह ज़िंदगी की इशारों में नही चलेगा।वह खुद उसका कमांडर बनेगा।और खुद अपनी ज़िंदगी को अपने हिसाब से तय की गई सुर और लय ताल से सजायेगा।चाहे वह बेसुरा ही क्यों न हो। कम से कम ओरिजिनल तो होगा..!
दुनिया में क्या अच्छा है और क्या बुरा है..इसे तय करने का राइट हमारे पास नही हैं। बहुतों को बुरी ज़िंदगी में रोमांच और थ्रिल नजर आता है।किंतु वह अपने भीतरी इंसान को कहीं न कहीं भावहीन बनाकर छोड़ देता है। अच्छाई बहुत बोरिंग चीज है। अच्छे लोगों को अक्सर अपने लोग भी ग्रांटेड लेते हैं। उनकी वैल्यू को संपति से आँकते हैं। यह समाज का बनाया हुआ सबसे बदसूरत दस्तूर सा है।पैसा है तो भई बढ़िया है दोस्ती गाँठ लो,नही है तो रहने दो…. व्यक्ति को आँकने का क्या मानक है यह कहीं दर्ज नही है।कोई नियम नही है।
भविष्य में यह जरूर देखा जाएगा कि ज़िंदगी जीने के मानकों में कौन फिट है, और कौन नही….धन-संपति गौण हो जाएगी। लोग धन से ऊब जायेंगे। ऐसे लोग भी रेयर होंगे।यह जीने ही नही देगा।तनाव अलग से और अनावश्यक खर्चे मूड को नासाज करती रहेगी। चिल कैसे रहना है….वो भी बिना स्ट्रेस के….मारकाट और भागमभाग की ज़िंदगी किस ओर समाज को ले जाएगा ये काफी डरावना है।इतना कहना चाहूँगी कि अपनी आजीविका के साधनों का इतना विस्तार जरूर हो कि हम दस लोगों की जिंदगी को अपलिफ्ट करने में मदद कर सकें।किंतु किसी की पहचान का कतई दुरूपयोग ना हो,इतना ख़्याल जरूर रखना होगा।
हम समाज में जो देखते हैं, वही अडॉप्ट करते हैं। क्योंकि वे बने ही एडॉप्शन के लिए है। चुनना हमारा बुद्धि विवेक का काम है।अगर समाज ने ख़ुशियाँ मनाने के लिए बढ़िया सा कैफ़े/रेस्त्रां बनाया है तो बेझिझक वहाँ जाइए, अपनी आमदनी का कुछ अंश खर्च कीजिये। वहाँ कुछ बेरोजगार भाई-बहिन रोजगार पा रहे हैं। उनकी रोजी-रोटी के बारे में भी सोचिए। बिना बाहर निकले कोई भी रेस्त्रां नही चल सकता..! यदि वे बने हैं तो क्या वे सुनसान और नीम अँधेरा हो ,चल पाएंगे..? वे बने ही जिंदादिल लोगों के लिए है..! किसी रुफ टॉप के खुले रेस्त्रां में आप बर्थडे पार्टी, एनिवर्सरी पार्टी मना रहे हो तो आप खुलकर डांस कीजिये। डांस के गुरु भले ही न हो, डांस में एक्सपर्ट न हो…कोई बात नही यार…चलेगा।
कम से कम झेंप तो हटेगा।खुद के साथ होना और रहना सीखोगे। आपकी सोच में खुलकर जीना मतलब…किसी का अहित करना तो दूर …सोचना भी नही है तो क्या बुरा है..? मैंने अपनी आधी ज़िंदगी में देखा और महसूस किया है जो लोग खुलकर जीते हैं, न वो गॉसिपिंग में इंट्रेस्टेड होते हैं और न ही किसी से जलते भूनते हैं। जीने वालों को देखकर नेगेटिव लोगों के मन में यह विचार आना जरूर स्वाभाविक है, हाय,..! काश हम भी ऐसे एन्जॉय कर पाते..! हाय, उसके जगह हम ही होते.. ! काश! हमारी भी ऐसी ही किस्मत होती..! खुद को उनके स्थान पर न देखना ही आज की दुनिया का द्वेष है।
हम सब भी खुलकर जी सकते हैं। जिंदादिल होना भी आसान नही है। इसकी पहली शर्त है…. जिंदादिल लोग किसी का भी अहित नही सोचते,वे खुद भी जीते हैं और दूसरों को भी जीने के लिए प्रेरित करते हैं। ईर्ष्या,द्वेष और किसी को डिफेम करने से बचते हैं। यदि सुन भी लेते हैं तो दूसरे कान से निकाल देते हैं। ये शर्त फुलफिल करते हो तो पक्की बात है कि आप जिंदादिल हो जाओगे।
देखो,प्रकृति स्वयं में बहुत बड़ी आर्टिस्ट है और म्यूजिक उसका फेवरेट ड्रीम प्रोजेक्ट है।संसार ही कविता है,संगीत है,दुनिया सुर और लय से ही चलती है। एक शक्ति हर वक़्त वह अपनी खुली आँखों से दुनिया को देखती है। वह नाच में मस्त मंलग इंसानों से बेहद प्यार करती है। मैं खुद ही प्रकृति की बेटी हूँ,आदिवासियत मेरे रगों में दौड़ता है।और उन्हीं के उसूलों पर चलती आयी हूँ।और आगे भी चलूँगी। ये खुद की जमीर से किया गया मेरा आल टाइम फेवरेट और पक्का वादा है।
साल के पहले दिन हमेशा एक ही प्रार्थना किया है कि-“मेरे प्यारे ब्रह्मांड… प्रकृति के रखवाले… दुनिया मे ख़ुशी की आमद खूब हो ! मुझे सकारात्मक बनाये रखना, रचनात्मक बनी रहूँ…दिल दुखाने की गारंटी नही लूँगी,बीते सालों के अनुभव से कहती हूँ कि दिल काफी लोगों का दुखाया है।अनायास ही दिल दुखा होगा। क्योंकि मैं सबको ख़ुश नही कर सकती। किसी को भी खुश रखना संभव ही नही है। जान बूझकर किसी का दिल आज तक नही दुखाया..! हाँ दिल दुखाकर उन्हें हमने कमजोर और कायर नही बल्कि सकारात्मक, मजबूत और सख्त दिल ही बनाया होगा जो उनकी तरक्की में सहायक हुआ होगा।
सरकारी अफसर होने के नाते मेरी जिम्मेदारियाँ व्यक्तिगत रुप से भी चुनौती पूर्ण है। जो मुझे हमेशा ताक पर रखती है। कभी-कभार ही वह पल आया है, जब मुझ जैसी दोस्तों के साथ ज़िंदगी को बिंदास और बेफ़िक्री से जीया है, तो क्या इतना भी हम अफसरों को आजादी नही है क्या…अफसर ही तो हैं, कोई खुदा तो नही न…खुदा भी अपनी ज़िंदगी ब्रह्मांड के रुफटॉप में इंसानों से ज़्यादा आलीशान तरीके से जीता है।
वह भी सबको जीने के लिए कहता है। हम इंसानों के जीने की चंद लम्हों के खूबसूरत अहसास को लोग अगर नेगेटिव तरीके से लें तो हम उनसे क्यों बहस करें… और सोच में आकाश पाताल का फर्क हो तो अपनी दुनिया को खूबसूरत बनाने में लग जाना चाहिए। बेशक यही सही डीसीजन होता है।
कुछ मेरा निजी अनुभव है,कुछ लोगों ने पीठ पीछे मुझे भी डिफेम करने की हिमाकत की है।उनकी हिमाकत को प्यार और सलाम..! उनसे लाख गुना बेहतर हैं ये जताकर उन्होंने मुझे डिफेम नही बल्कि और भी यूनिक साबित किया है। ऐसे अदृश्य आत्माओं का भी शुक्रिया !💐💐वबातूनी होने की होड़ में लिखते-लिखते कुछ ज्यादा ही लिख जाती हूँ।अब जरा कलम की ओर मुड़ती हूँ।
बीते साल मेरे लिए सृजनात्मक रहा बेहद रोमांचक रही। ख्वाबों से यथार्थ में उतर आयी मेरी कहानी संग्रह “धुला धुला सा ख़्वाब “यूथ ने काफी पसंद किया।पहली उपन्यास”परछाई का घेरा” का दूसरा संस्मरण भी बीते साल प्रकाशित हुआ। साहित्यिक यात्रा धीमी गति से बढ़ती रही। मुझे खुशी है कि यह मेरी डिवाइन यात्रा रुकी नही, थमी नही… धीरे-धीरे से बढ़ना मेरी हॉबी और मेरी नजरिया का विकसित होना भी रहा।
अपनी संस्कृति और कला को जज्ब करने का अवसर मिला, मान -सम्मान मिला। यह अभूतपूर्व है।
इस पल और इस जिंदगी के लिए…शुक्रिया कहूँ यह कम लगता है।
बस कृतज्ञ हूँ, और हृदय की अतल गहराईयों से कृतज्ञता इस ब्रह्मांड को हर पल भेजती हूँ।
बस ….हे पेमश्रे..!💐💐💞💞