परछाई का घेरा
कब सुबह होगी,
कब शाम
यही इंतज़ार की घड़ियाँ
गिनते-गिनते
उम्र फ़िसल रही थी।
चारों ओर हरियाली की ओढ़नी ओढ़े पहाड़,नीचे खाईयों में बहती काली नदी की कल-कल, छल-छल करती मधुर आवाज एवं सफ़ेद मुकुट धारण किए सुदूर नेपाल के हिमालय सूरज की सुनहरी किरणों से लिपट ऐसे चमक उठता था जैसे चाँदी के आभूषण !
संदर्भित अंश “परछाई का घेरा” पृष्ठ 52 से लिया गया है। जरूर पढ़ियेगा और अपनी उम्र को बढ़ने से थोड़ा रोकियेगा
धुला-धुला सा ख्वाब
किताबी रुप में मेरे ख़्वाबों को एक नया आकार मिलना,मेरे लिए सच में खूबसूरत बात है। कहानी संग्रह का शीर्षक है “धुला -धुला सा ख़्वाब”। प्रकृति के अनेक रंगों में गूँथी हुई इक्कीस कहानियाँ… कुछ कल्पनाओं और कुछ हक़ीक़त की दुनियां में सैर कराएंगी। पढना लिखना सबका अपना च्वॉइस है,कुछ सच्चे लोग अप्रिसिएट करेंगे तो कुछ नही करेंगे। सबको खुश करना संभव नही है। लेखन किसी को खुश करने की गरज से नही लिखा जाता। चाहे पढो या लिखो अपनी रचनात्मक ऊर्जाओं का सही इस्तेमाल करना भी तो सेवा ही है। घर में किताबों का होना बहुत मायने रखता है। अपनी तंग बुद्धि को हवा पानी मिलना जैसा होता है।लेखन यदि निःस्वार्थ भाव से किया जाता है तो वह लिखने वाले को ही नही…पढ़ने वालों को भी बहुत सकारात्मक और ऊर्जावान बनाता है। किसी ऐसे उद्देश्य से लिखना जिसमें पूर्व से ही नाम,दाम और शौहरत का आकलन हो…ऐसे लेखन पाठकों के हृदय को टच नही करती।
आभास
आभास बेहद ही ख़ास एवं डाउन सिंड्रोमव बच्चा है। जिसका मानसिक वृद्धि सामान्य बच्ची सी नहीं है। वह ठीक तरह से बोल नहीं सकता। अपने भावो को लिखकर भी व्यक्त नहीं कर सकता फिर भी वह अपने घर एवं आस पास के वातावरण में खुशियाँ बाँटने में सक्षम है क्योंकि वह एक बेहद खुशमिजाज बच्चा है। वह हर रोज़ अपनी माँ का भावों की अतल गहराइयों से परिचय करता है। तथा दया, करुणा ,ममता, और प्रेम की बन्द गाँठो को अपनी माँ के साथ मिलकर खोलता जाता है। , दिव्यांग एवं नि:शक्त बच्चो के नि:शब्द भावो को शब्दों में पिरोने तथा प्रकृति के रंग-बिरंगे जीवन के कागज में उतारने की दिशा में अपनी माँ को नई राह दिखाकर उस ख़ास बच्चे ने अपनी माँ को “एक ख़ास माँ” का भी दर्जा दिया है।
असीम प्रेम……इस धरती से ….अंनत तक…!