श्राद्ध का महीना चल रहा था, तारीख 11 सितंबर 2021.. एकदम भोर में जब आँगन के कोने में दूब घास के बीच एक काले रंग का कोई कीड़ा सा हिलते डुलते देखा तो मुझे लगा, शायद कोई चूहा फुदक रहा है,सुबह आँखें मलते गेट खोलने को यह सोचकर दौड़ पड़ना कि कहीं कामवाली उल्टे पाँव न लौट पड़े….तो साफ कुछ दिखेगा ही नहीं .. मुझे भी सुबह का लाइव दृश्य सब धुँधला ही दिखायी पड़ रहा था।
भीतर आकर पानी के छींटे मुख व आँख में पड़ते ही सब कुछ साफ़ दिख गया और फिर बाहर देखने गयी, मुझे फिर लगा ये चूहा ही है। ग्रोजा के जरा सा हिलने डुलने और हल्की सी आवाज सुन एक और बच्चे को पैदा करते हुए देखा तो मैं हतप्रभ रह गयी।
इतनी जल्दी बच्चे कैसे हो गए ? वो तो गर्भवती भी नही लगती थी,कल तक पूरे घर के बाग बगीचों पर कूदफाँद मचा रही थी। मुझे कुछ नही सूझा झट से पति को उठा ले गयी -“देखो तो ग्रोजा ने बच्चे तो नही दिये?”दोनों मियाँ बीबी कोने वाले कमरे की खिड़की के भीतरसे ही देखने लगे…
ग्रोजा अपने जगह से उठकर आयी और बच्चे को मुँह से उठाकर दूध पिलाने लगी”अरे हमारी ग्रोजा माँ बन गयी” हम दोनों खुशी से हँसने लगे।अब तो हम दोनों का ही प्रेम ग्रोजा पर उमड़ आया! हम जल्दी से उसके पास गए और कहा “अरे वाह ग्रोजा तू माँ बन गयी।” बधाई हो!💐💐 वो भावुक व नम आँखों से हमें देख रही थी।शायद बात समझ रही थी।
उस रोज सुबह छह बजे से मेरे दफ़्तर निकलने तक दो बच्चे ही जन्म दे चुकी थी और प्यार से वह उन्हें संभाल भी रही थी,कामवाली रामा देवी भी आ गयी। उसने भी स्वस्थ जच्चा बच्चा को देखा। पूरे लॉकडाउन में रामा ने सैकड़ों गरीब और मजदूर महिलाओं की सफलतापूर्वक डिलिवरी की थी तो उसका अनुभव हमसे कहीं ज्यादा होगा ही.. सो हमने भी उनसे ही इस विषय पर सलाह लेना उचित समझा…कि क्या खाना देना होगा…क्या नही आदि आदि…वो ठठाकर हँसती हुई बोली-“आज शनिवार है साक्षात भैरव-भैरवी आ गए है दीदी” बधाई हो! ये सुनकर हमें भी खुशी हुई।
चलो दो बच्चे वो आराम से संभाल लेगी। हम भी अब इत्मीनान से दफ़्तर को निकल गए। रास्ते मे ही थे कि पति का फ़ोन आ गया” सुनो आभा ग्रोजा ने एक और बच्चा दे दिया।”.. यानि तीन बच्चे..ओह! ख्याल रखना .. शाम को लौटते हुए बैटनेरी डॉक्टर से सलाह लेकर दवा ले आऊँगी।
ये कह हम दफ़्तर पहुँच गए। पूरे दिन भर पति लाइव कमेंट्री की तरह ग्रोजा का आँखों देखा हाल मुझे टेलीफोन से तब तक बयां करते रहे जब तक कि वह आठ बच्चों की माँ नही बनी। शाम होते-होते ग्रोजा आठ बच्चों को सफलतापूर्वक जन्म दे चुकी थी।जैसे ही मैंने आठवें बच्चे के बारे में सुना तुरंत अपने पी.ए वर्मा जी से बात कर पशु डॉक्टर से सम्पर्क साधा,उन्होंने दवा की लंबी लिस्ट व्हाट्सअप पर भेज दी।
घर आते ही आठों बच्चों को प्रेम से दूध पिलाते देख मैं भी फूली नही समा रही थी।हम दोनों मियां बीबी ने उसके खान- पान में दूध पनीर की मात्रा बढ़ा दी और तीन दिन तक गर्म उबला हुआ पानी ठंडा कर देते रहे और कुछ दिन बाद चिकन देना भी शुरू कर दिया डॉक्टर के कहे नुसार खून बढ़ाने वाली दवा भी लगातार हफ्ते भर देते रहे, परिणाम यह हुआ कि ग्रोजा का हेल्थ भी सही रहा और सारे बच्चे भी तंदुरुस्त दिखने लगे।
कुछ दिन पहले रामा कह रही थी कि दीदी-” कुत्तों के सभी पिल्ले जीवित भी नही रहते…कुछ ही बच पायेंगे”… ये सुनकर मुझे ग्रोजा की ज्यादा चिंता सताने लगी।रोज समझाती रहती थी-“ग्रोजा अपने बच्चों का ख्याल रखना, आराम से दूध देना, कहीं पैरों से दबेंगे” …ना जाने क्या क्या न कहती।
मेरे पति ने भी ग्रोजा का खुद से ज्यादा ख्याल रखा।ग्रोजा बेहद अच्छी माँ साबित हुई उसने अपने एक चालू मोटू बच्चे को कम दूध पिलाकर सबसे छोटे और बेहद कमजोर बच्चे को प्रेम से खींच अपना निप्पल उसके मुँह में लगा उसे भी जीवित रखा।
इतनी अच्छी परवरिश उसने अपने बच्चो की है कि मैं आश्चर्य में पड़ जाती थी। कितना प्रेम और लगाव उसके मुख में होता था मैं देख-देख कर उसको पुचकार उठती।
एक दिन एक मित्र ने पूछा कितने मेल कितने फीमेल हैं?
हमने तो देखा ही नही …एक दिनी या दो दिनी के बच्चो में कैसे लिंग की पहचान होती। हमने कहा-” अभी तो नही मालूम, पहचान नही पा रहे” …औऱ हँसी भी इसलिए भी जोर की आयी कि मेरे पति को भी भेद नही मालूम था।दूसरे दिन जब रामा काम पर आयी तब उससे जाँचने को कह दिया,वो बोली -” दीदी चार लडक़ी और चार लडक़े हैं… हमने फटाक से पूछा-” कैसे पहचान होती है?” तब उसने बताया….सारा माजरा..ये भी हम अज्ञानियों के लिए ज्ञान से कम न था।अब पूरी विश्वास से कह सकते थे कि चार लड़का है और चार लड़की ….और किसी को देते वक्त फिर बिना जाँच परख के लिए सौंप दिये… ये भी लतीफा साबित हुआ,हाहाहा
आज ग्रोजा के आठों में से छह बच्चें अलग-अलग घरों में बड़े ठाठ-बाठ से व बड़े ठसक से जीवन जी रहे हैं।दो बच्चें अभी अपनी माँ के साथ ही हैं वो जीव है तो क्या हुआ! संवेदना हमसे कहीं ज्यादा जानवरों में भी होता है, जिस दिन उसके दो बच्चें उससे दूर हुए उस दिन तो बेचारी वो पगला सी गयी थी, खाना पीना सब छोड़ दिया, इधर-उधर जाने कहाँ कहाँ अपने दो बच्चों जिसमें मोटू बच्चा भी शामिल था, को खोजती रही।
उसकी बेहाल स्थिति को देख मैं भी परेशां हुई और उसके निकट जाकर प्यार से उसके सर पर हाथ फेरती हुई बोली-“ग्रोजा तेरे बच्चे हमारे ही मित्र के घर में गए हैं वहाँ वो मजे से रहेंगे, तुम कब तक उन्हें दूध दे सकोगी ? देखो सभी बच्चों के दाँत भी निकल आये हैं, तुझे भी तो दुखता है ना! और तू आजकल बच्चों को कहाँ दूध पिलाती है,तेरे इतने बच्चे हम कैसे पालें?… परमा भी तो अब तक नही आया।
छोटी सी आँगन में इतने बच्चे, बाप रे!जब बड़े होंगे कहाँ रहेंगे…तू भी तो सब जानती है। बेचारी मेरी लाटी …सब ध्यान से सुनती रही! कुछ देर में उसे जब खाना दिया .. चुपचाप से खा ली। दूसरी बार जब चार बच्चों को देना था।पहले ही दिन हमने उसे मानसिक रुप से तैयार किया गया-“ग्रोजा कल तेरे चार बच्चे भी हमारे परिचित मित्रों के घर जाएंगे ठीक है ना.. हताश परेशां मत होना।सब बढ़िया से रहेंगे जब तुम्हें उनकी याद आएगी तो हम तुम्हें उनसे मिलाएंगे…ठीक छु.. फिर मान गयी।
एक दिन मुझे लगा मैं अपनी ग्रोजा का मानसिक उत्पीड़न कर रही हूँ ….दो बच्चों को हमने उससे अभी दूर नही किया है,जब तक कि वह खुद ही इरिटेट न हो।जिस दिन हमें लगेगा कि अब बच्चों को कहीं भेज देना उचित होगा, उसी दिन सोचेंगे।
दोनों बच्चे भी एक दूसरे के गले लग पूरे आँगन में डोलते रहते हैं और माँ ग्रोजा उन्हें देख-देख कर मुझे थैंक्यू कहती सी प्रतीत होती है,मुझे देख मेरे गले में अपनी बाँहें डाल लेती है।मेरे पैरों में लोट जाती है आखिर माँ ईश्वरीय कृति ही तो है। उसे भी मातृत्व सुख से सराबोर होते देख मेरा हृदय भी पुलकित हो उठता है।
मैं अपनी ग्रोजा को बधाई देती हूँ सचमुच वो बधाई की पात्र है कि उसने अपने बच्चों की परवरिश में इंसानों की सोच को भी हरा दिया।,”शाबास ग्रोजा”….
अगली बार वह अच्छी नस्ल के बच्चे फिर से जन्माये शुभ-शुभ फलित हो!