मैं लिखना चाहती हूँ
उन लोगों के लिए
सलाम और दुआ
जो समाज को
अच्छाई दे जाते हैं।
प्रत्यक्ष ही नही
अप्रत्यक्ष और दूरगामी
लाभ से भी
दूसरों को वंचित नही करते।
मैं विध्वंस नही लिखूँगी
न लिखूँगी कोई
चालाकियाँ
मैं लिखूँगी
ईमानदारी
और संवेदनशीलता
जिनके बचे रहने से
दुनिया बचेगी और बचेंगे
बुरे लोग भी.।
मैं लिखूँगी प्रेम करना
दिन-दुखियों से
कमजोर काया से
ये मोल- भाव नही जानते।
इच्छाओं की अनर्थक
पूर्ति के लिए ..!
और दुआएं होती है
जिनकी रहमदिल,
असर बड़ी जल्दी करती है।
मैं लिखूँगी
सकारात्मक बने रहने के लिए
कभी कमजोर हो जाना,
सचमुच कोई कमी नही है।
अडिग रहना,कथनों की नोंक में,
झुकने नही देगा कभी।
क्योंकि वक़्त लगता है।
इमारत विश्वास का बनने में…।
सचमुच वक़्त लगता है।