“जीवन की नई दिशा: उम्र का सफर”

कतई कन्फ्यूज मत होइएगा,कि ये जो तस्वीर वाली है,कोई पच्चीस साल की लड़की होगी,न..न.ठीक
पच्चीस का दुगुना कितना होता है..? अनुमान लगा लो..हाहाहा…ठीक कह रही हूँ न,पता नही क्यों ..अब मुझे ये सब थोड़ा घुमा फिराकर बताना अच्छा लग रहा है।लाइफ में कुछ ट्विस्ट होना चाहिए है कि नही..!आज अर्धशतक की दहलीज़ पर सादर पहुँच गयी हूँ। यह मेरा नया अनुभव है। यह लिखते हुए जस्ट फील हो रहा है,कि सितारों सी अनेकों तरंगें मन को ऐसे झंकृत कर रही है….. 

जैसे कोई जादूगरी सा कोई करामात या कहूँ की उम्र की नई दुनिया में एंट्री …!
यकीं मानिए, आज तक अपनी उम्र के हिसाब-किताब की रोकड़ बही में कोई हेर फेर नही किया। जितना है, ठीक उतना ही..हम अपनी उम्र बताने में भी ईमानदारी बरतते रहे हैं। उम्र खुद भी बेहद चालाक होती है, छुपती कहां है..!बेईमानी नही हो सकती।


बढ़ती उम्र का आनंद तब बढ़ जाता है,जब हम शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक रुप से खुद को फिट रखते हैं।यह बड़ी जिम्मेदारी है।जिसके लिए आलस को त्याग कर परिश्रम करना जरूरी है। कम उम्र में किया गया मेहनत, बड़ी उम्र की परेशानियों को कम कर देती है।बचपन में हम उन बेहद सक्रिय बच्चों में गिने जाते थे। जो एक जगह बैठ नही सकते थे। आज भी उम्र के इस मोड़ में अकसर कभी फिसल जाती हूँ। कभी खिड़की, दरवाज़ों पर सिर टकरा जाता है। तो लगता है-“अरे बचपन गया नही है क्या..?” खुद से सवाल पूछती हूँ, खुद ही जवाब देती हूँ। खुद से संवाद कायम करने का और खुद से मुलाकात का यह पल अद्भुत सा लगता है।


मेरे नब्बे पार पिताजी की याददाश्त गजब की थी। इस कारण मैं उन लोगों की इस बात पर सहमत नही होती कि याददाश्त बढ़ती उम्र की घटती जाने वाली प्रक्रिया है। आपकी याददाश्त ठीक-ठाक भी है तो उम्र बेचारी घबरा ही जायेगी।और जरा आने में देर लगाएगी।


“उम्र बताना गुनाह नही है
फिर भी छुपा लेते है,लोग।
जितना छिपाते हैं ,उम्र
ज़्यादा जता जाती हैं।”
कहावत है न -“महिलाओं से उनकी उम्र और पुरुषों से उनकी आमदनी कभी नही पूछनी चाहिए।”अब तो ये जमाने की बात हो गयी है।नौकरीपेशा पुरुषों की मासिक आमदनी से तो हम भलीभाँति वाकिफ़ हैं। हम कुबेर जी के खंजाची जो हुए..!


हमेशा उन महिलाओं को आश्चर्य से देखती व सुनती हूँ,जिन्हें अपनी उम्र बताने में थोड़ी झिझक होती है। जाने क्यों होती है ?? मुझे समझ नही आता। मैंने कईयों को देखा है। यहाँ तक कि गाँव की महिलाओं को भी अपनी उम्र बताने में हिच होती है-” दो बच्चे चौदह और पंद्रह साल के हैं, तो लगा लो तुम हिसाब ।” मैं हिसाब लगाती हूँ,-“जब तू बीस के आस-पास की रही होगी, शादी तभी हुई होगी तो.. अब तो तू लगभग पैंतीस की होगी।” इतना सुनते ही वो अपनी आँखें खींच लेती हैं -“न हो दीदी, क्या बात कर रहे आप शादी तो सोलह-सत्रह में हो गयी थी।तीस-बत्तीस लगा लो।” मेरे एक मित्र कहते हैं कि -“कुछ लोग बूढ़े होने के लिए पैदा नही होते।” सत्तर अस्सी में ही इस कथन से कुछ चमत्कृत हो पाऊँगी।


उम्र बताने में भी हम बेबाक ही रहे,किन्तु उम्र आँखें टेढ़ी करती रही .. मुझे छेड़ती रही -” देख कितना भी सच बोल ले तू…. तुझे उससे कम का न दिखाया तो मैं तेरी हमराज नही.!”हमारे बीच यही मीठी- मीठी सी होती नौंक- झोंक ज़िंदगी से मुहब्बत करा देती है। सच में मेरी जुबां ही मेरी उम्र की जीपीएस है।एकदम सटीक बताती है।ये दीगर बात है कि मेरे घरवालों ने सरकारी कागज़ात में डेढ़ साल बढ़ा कर उम्र लिख दी थी। गाँव के प्राइमरी स्कूल में होशियार बच्ची होने, गोल मटोल,कद्दू सी व बड़ी उम्र की दिखने के कारण हमारे मासाब ने बतौर इनाम मुझे डेढ़ साल बढ़ा कर दे दिया था। इसका दूरगामी लाभदायक असर यह होगा कि हम सरकार के चंगुल से जल्दी फ्री होकर इत्मीनान व बेबाकी से अपनी किताबें लिखेंगे।
ओह! मेरी उम्र मुझे उस पल का… उस खूबसूरत लम्हें का बेसब्री से इंतज़ार है. !


आज जन्मदिन है।जन्मदिन में मुझे खुद से बात करने का इंतजार बहुत रहता। भोर नही हुआ है,अभी मैं गप्पोड़ में व्यस्त हूँ।और खुद को निहार रही हूँ, बधाई दे रही हूँ। लिखने में इतनी तल्लीन हो जाती हूँ कि लगता है,जैसे मेरा पुनर्जन्म हुआ हो. ! मैं अपने जन्मदाताओं को याद कर उनके प्रति नतमस्तक हूँ, मेरे माता-पिता ने मुझे वह अमूल्य जीन दिया है।जिसका मैं वर्णन नही कर सकती। साफ त्वचा, सकारात्मक सोच, घुँघराले बाल, जिससे मुझे बेहद प्रेम है। और मानवीय गुण ….कृतज्ञ हूँ! 💞
पचासवीं, ग्रेट ..सुनने से ज्यादा सोचकर ही एक गुदगुदी वाली फीलिंग आ रही है।


उम्र तो धीर गम्भीर और सहजता और सरलता की ओर बढ़ने वाली है, किन्तु मस्तीखोर एक चुलबुली लड़की भी मुझे तंग करने से बाज नही आती है, तो मैं नजदीकी गाँव चली जाती हूँ,और भूल जाती हूँ कि हम किधर हैं और क्यों हैं.?
काम-धाम व दुनियादारी के तमामबझंझटों से डिटॉक्स होना भी तो जरूरी है। वरना जिएंगे कैसे…!खुद के लिए एक खूबसूरत संसार का नक्सा तो हमें खुद ही बनाना होता है।
मैं जानती हूँ कि जन्मदिन का हर साल तफ़रीह मारते हुए आना…


ज़िन्दगी का एक वर्ष कम हो जाना है। बढ़ती उम्र की चिंता से बेफ़िक्र….सुबह की सुनहरी धूप से खिल आयी नव कोंपल की तरह अपने अंतस के आँगन में महक आती हूँ।
मेनोपॉज के पहले चक्र से बाहर निकल आने के बाद मुझे यूँ लगा जैसे मैं कोई युद्ध जीत गयी हूँ,एक मानसिक युद्ध….जो बिना हथियारों के ही लड़ी जाती है।मूक और भीतरी द्रव्य की हलचलों के साथ… ऐसी शीत युद्ध जिसने बरसों तक मेरे व्यवहार चक्र में ज्यादती की और मेरी मूड की हर कमान को अपने हाथ में लेते हुए मुझे अपने मोहपाश में बाँधकर रखने से भी गुरेज नही किया, हर माह नई टकराव रुपी माहवारी से मेरा सामना होता रहा, दोनों के बीच हार-जीत का खेल चलता रहा। फिर आया… मेनोपॉज, जिसका पहला चरण हमने पार कर लिया है।


धत्त ! अब जाओ हटो…परे खिसको ! मेरे मूड के रखवालों, तुम्हारी अब बिल्कुल भी जरूरत नही है। मैं समंदर की अथाह लंबी यात्रा कर अपनी कश्ती को किनारे ले आयी हूँ। चलते, उठते -बैठते, दौड़ते भागते अब चैन मुक्कमल हो आयी है।और अपनी जिंदगी के रस्ते पर जो लोग मुझसे यकायक बुलबुले से टकरा आये। उन लोगों ने मेरे लिए जो सम और विषम परिस्थितियाँ पैदा की…. उनका भी शुक्रगुजार हूँ।


उम्र के इस पड़ाव में पहुँच कर मैं काफी रोमांचित हूँ। अब कोई डर नही लग रहा। अब कोई बंधन नही.. आजाद और पक्षियों सी ऊँची सोच के परिंदे सी महसूस कर रही हूँ।
आज मेरे जन्मदिन की खुशी के अवसर पर मेरे पेज पढ़ने वाले समस्त पाठकों एवं प्रशंसकों को मेरा तहेदिल से आभार एवं शुक्रिया ! और प्यार

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