दिसंबर की भोर
नितांत चुप्पी हैनिर्वात में बहती हवा मेरे कानों के पर्दों मेंमें सरसराहट कर रही हैऔर मेरे बग़ल में गहन निद्रा मेंबसोए आभास की उसाँसे एक लय में बहती सी किसी दिव्य मंत्र सा इस तरह सुन रही हूँ।जैसे में मेडिटेशन सीख रही हूँ। ऊनी शॉल लपेटे मैं बरामदे में आती हूँपौं फटने को आतुर है।फूलों … Read more