“शाखों का साथ: बरसों पुरानी दरख्त का संवाद”

रोज का सिलसिला है,दफ़्तर जाती हूँ,आती हूँ,आने-जाने के बीच जितनी अवधि शेष होती है,जिम्मेदारियों के बोझ को कुछ हल्का करती हूँ।जितनी हल्की होती जाती हूँ,दस्तूर जैसा…. बोझ भी बढ़ता ही जाता है।वैसे भी उबड़ खाबड़ पहाडियों पर चलने-फिरने के आदी बोझ से कब घबराएं हैं! कभी नही डरी! दुगुनी हिम्मत कर फिर कर्म क्षेत्र में … Read more

वही तो हूँ मैं..

वही तो हूँ मैं.. वही तो हूँ मैं..जैसे तुमपिछली धूप मेंछोड़ गए थे,मुझेअपनी कुछ क़िताबों मेंख़्वाब बुनकररख गये थेमेज परइस अटूट विश्वास के साथक़िपढ़ लूँगीसारे चैप्टरबिना सवालजवाब किएइस धूप के लौट आने तककुछ भी तो नही बदलावही तुम हो .. वही मैं हूँ..आकाश गंगाओ का साथ है।जानते हो,हमारे भीतर भीचमकता हैरोजएक अलगसूरज,चाँद …… और सितारे … Read more