अजीब से दिन आ गए हैं। चार पहियों के दिन फिर गए हैं! घूमती पहियों की ओर देख लोग मोटर वाहनों को हाय हेलो की तर्ज पर इशारों ही इशारों में बुदबुदाते हैं-” ओ,मोटर वाहन भैया रे..थोड़ा रुक जा यार,जरा मुझे रोड़ पार करने दो।” वो इंजनदार सुनता कहाँ है।
सड़कों में आदमी की बेफ़िक्रीपन और निडरता रिकार्ड दर रिकार्ड बढ़ता ही जा रहा है।ऐसी निडरता किस काम की…जो अपनी जान की कीमत न समझें। अपनी अहमियत न जान सके!
गाड़ी का क्या जाता है भई,आदमी चालित मशीन ही तो है। वह तो बस आँखों के सामने जीवंत घूम रही लोक अभिनय को आँखें फाड़े मूक देखता व गदगद रहता है।बत्तीसी चमकाता है, किन्तु सजीव जीवों की वैल्यू दिन प्रतिदिन घटते जाना ये समाज के लिए बड़ा घातक संदेश है। तेजी से नदारद हो रहे तौर-तरीके मशीनों को सिखाया नही जाता है,वो अभ्यस्त होते हैं.. आदमी की दिमाग़ी ऊर्जा से स्वतः सक्रिय होने के लिए केवल तरंगों के स्पर्श का इंतज़ार करते है। फिर भी गाड़ी के ब्रेक पर तो आदमी का ही दिमाग़ चलता है, है.. कि नही..!
एक दिन में ही न जाने ऐसे कितने ही मुसाफ़िर,
कोई मुस्कुराकर तो कोई गुस्से से तमतमाकर गाड़ी को रुकने का संकेत अपनी हाथों से कराते हैं।अंगुलियाँ कभी इंडिकेटर सा लगता है। ट्रैफिक रुल के लाल, हरे व पीले रंग जाय पानी पीने… नियम-कानून जाय भाड़ में…चलती गाड़ी के आगे यकायक कूद कर आदमी तेजी से भी नही…कछुवा चाल से सड़क पार करता है। यदि वाहन में ऐसा कोई डिवाइस होता कि उस वक्त सामने उछल आए मुसाफ़िर के दिमाग में चल क्या रहा है ..?
अनेकों आपात स्थितियों से बचा जा सकता है, इन दिनों तो पता ही नही चलता कि आदमी सड़क पार कर रहा है या सड़क आदमी को पार करवा रहा है।चलती गाड़ी की गति को कोई नही देखता …ऑटो, रिक्शा, स्कूटी, बाइक एवं साइकिल वालों के तो कहने ही क्या….कोई इक्का दुक्का ही सड़कों को गौर से देख सावधानीपूर्वक सड़क क्रॉस करता है, अधिकांशत तो गाड़ियों को मच्छर समझते हैं…सड़कों पर आदमी बिना इधर-उधर देखें ….कहीं से भी धप्प टपक जाता है कि ऑंखें आश्चर्य से ऐसे फ़टी की फटी ही रह जाती है,जैसे कि गाड़ी चलाने से वह गुनाहगार हो गया हो।
मोबाइल कान में चिपकाए सड़क पर दिशाविहीन बॉल जैसे कहीं से भी उछल आते हैं, बाप रे…ड्राइवर की जरा सी नजर हटी कि समझो दुर्घटना घटी…..अब गलती किसकी मानोगे …?
कुछ अपवादों को छोड़ दें तो ….लापरवाही गाड़ी वालों की अधिक नही होती और यदि आदमी सड़क पर ही गिर पीर गया तो ड्राइवर के मत्थे अपनी गलती टाँग कर रौब दिखाते हैं।
शाम की ही बात है।हम ऊँचापुल से घर को जा रहे थे,एक छोटी गाड़ी मेरी तरफ को आ रही थी। नहर कवरिंग के फेर में सड़कें कितनी बदहाल हैं, सब देख रहे हैं।ड्राइवर भोंपू बजाए जरा संभल- संभल कर गाड़ी ड्राइव कर रहा था, क्या होता है न… ज्यादा संभल कर चलो तो खामख्वाह गड्ढे में पैर रखने जैसा होता है। औरतों का हुजूम सड़क पर चल रही थी,तो किसकी मजाल कि अपना मुहँ खोलें … शाम हुई नही कि मेनरोड पर ही ईवनिंग वॉक करना हुआ, गलियाँ सैकड़ों हैं। वहाँ चलना सेफ भी है, फिर भी खाली हाथ पूरी सड़क पर कब्जा जमाए औरतों का चलना जरूरी हुआ।
बच-बच के देख बाबू, बच-बच के गाड़ी चला। औरतों की खेप जा रही है, सावधानी से चला … बस में बैठा अपने धुन का पक्का ड्राइवर गाड़ी सरका रहा था। यकायक एक औरत की दाएं पैर की चप्पल टायर के नीचे आ गयी। और वह औरत गिरते-गिरते बची। अच्छा हुआ, ड्राइवर सतर्क था, हल्की सी ब्रेक देते ही चप्पल पर ही पहिया थम गयी। गाड़ी भी औरतों की एक अंजान-अनदेखी व अबूझ रुप फ़िल्म की भाँति देख डर गया। त्वचा को खरोंच तक नही आयी।
जानते हो,औरतों के कदमों से तो धरा भी थम जाती है,फिर चप्पल की क्या मजाल..सही-सलामत औरत तनकर खड़ी हो गयी।
देखो,जो सही है, तो सही है,जो गलत है तो गलत है ….इतना खुलकर कहने की हिम्मत तो हर आदमी को होनी ही चाहिए। सड़क तंग थी। दूर चौड़ी जगह पर हमारे पहिये सुस्ता रहे थे। ओहो, फिर क्या होना था,सारी औरतें ड्राइवर को घूर-घूर कर नजरों से हिंसक हो गयी। हम अहिंसक से दूर से ही माजरा जान गाड़ी की भोंपू बजा दी…जरा देर में गाड़ी को आगे बढ़ने का मौका मिल गया।
जमाना बहुत रुग्ण अवस्था में चल रहा है,हम लोगों का सम्मान करना तो दूर…कैसे असम्मान और बेइज्जत करें,इस प्रवृत्ति की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। समाज की यह कुरूपता बेहद चिंतनीय और खुद के व्यक्तित्व के लिए भी बड़ा घातक है।
सड़क पार करते वक़्त ट्रैफिक रूल को देखें,फिर रोड क्रॉस करें। हाथ से इशारा कर गाड़ी न रुकवाएं। तार -बाड़ और कलपुर्जे ही तो हैं, खुदा न करें कभी गाड़ी के ब्रेक का मूड़ ही उखड़ गया तो ….क्या करोगे ?
एक वाक्या याद आ रहा है,आज से लगभग कुछ बरस पहले मैं और उषा दी हाथ पकड़ कर तिकोनिया चौराहा पार करने की जुगत कर रहे थे,सड़क पार करने के मुआमले में हम आज भी जंगली हैं, बहुत डरती हूँ, पहाड़ी जानवरों की तरह….शहरी जानवर तो दबंगई पर उतर आते हैं।रोड क्रॉस करते वक़्त मैं न….दूर तक सड़क खाली होने का वेट करती रहती हूँ, यह असम्भव बात है, एक सेकंड भी गाड़ियों का आवागमन थम नही सकता,लालबत्तियाँ सबकी बुझी पड़ी थी।
तिकोनिया चौराहा हल्द्वानी शहर का सबसे व्यस्त सड़क है,यहाँ बुद्ध पार्क है, जहाँ धरना प्रदर्शन होते रहते हैं जमावाड़ा आदमियों का लगा रहता है।उस दिन वहाँ रोशनी सोसायटी का एक कार्यक्रम था।
हम दो दोस्त,हमराही से…बुद्ध पार्क की ओर बढ़ रहे थे,सड़क पर भारी आदमकद ट्रक और डम्परों का तांता लगा था। पूर्व से बैठा डर सर उठाते मुझे तंग कर रहा था।
दीदी बोली-” चलो आभा, आओ ..जल्दी से रोड क्रॉस करें, मैं घबराई हिम्मत करके दीदी का हाथ पकड़ दोनों संग आगे बढे, दो कदम बढ़ाए ही थे कि एक मुँह पिचका डम्पर करीब आ रहा था,दीदी ने उसी अंदाज में हाथ दिया-“बाबा थोड़ा रुक जा न ..!बड़ी जल्दी हो रही इनको…हमें भी तो जरा देखो।” हमने सफलतापूर्वक रोड पार कर ली।ये खुशी छोटी नही थी। तभी तो आज लिखने पर बात बन आयी।
मैं तपाक से दीदी से बोली-“ब्रेक फेल हो जाता तो.. !”पीछे से हँसी की तेज फुहारें सीधे दोनों की कानों पर पड़ी, मुड़कर पीछे देखा तो वह भद्रजन श्री विजय पाल जी थे,उषा दी के बेस्ट फ्रेंड हैं ।तीनों की हँसी के ठहाके कान में मेरे गूँजते रहें। हम देख-दाख कर सड़क पार करने वाले लोग हैं,देर तक रुक कर,थमकर व ठहर कर हम आगे बढे…. सब हम जैसे थोड़े ही न होते हैं..!
अगली बार सतर्कता बरतना और हाथ से चलती गाड़ी को मत रोकना।
गाड़ी के तेवर पहचाने की कोशिश करना,फिर गंतव्य की ओर बढ़ना …!
ठीक छु।