“धुला-धुला सा ख्वाब: कहानियाँ जीवन के रंग-बिरंगे सफरों से”

ख्वाबों को अपनी आँखों में सुरमा लगाना बड़ा पसंद आता है। और जानते हो!
मुझसे मेरा ख़्वाब अकसर कहती है-“जिंदगी एक ही सतह पर चलने का नाम थोड़े ही ना है।”कुछ अतीत होते हैं।कुछ भविष्य के सपने होंगे और अभी
जो वर्तमान है।
वो कितना सुंदर है!


कुछ अतीत भूलने के लिए और कुछ ताउम्र जीने के लिए होते है।और ये जो अतीत की मैं यहाँ पर बात कर रही हूँ,वो मेरे जीवनभर
के लिए स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक जैसी है।जिसे मैं, दौड़ती भागती और उड़ती इस युग के अजीबोगरीब दुनिया में भी हर लम्हा याद करने के लिए समय-दर-
समय देती हूँ।  

तस्वीरें ख्वाबों की आँखों में गहराई ले आती है,और ये जो गहराई होती है ना! अतीत के पिक्चर को एकदम निकट ले आती है। मेरी जिंदगी की जो भी जमा पूँजी है।सुंदर वर्तमान को यादगार अतीत में ढालने के लिए की गयी निवेश ही है।
ये अविस्मरणीय अतीत मेरी अंतिम जिंदगी तक मुझसे टकराती रहेगी और कहेगी-” तुम उंगुलियों पर कब नचवाओगी हमें ??”
और हर रोज कहती भी है।


मुझे कहना होता है,जब नौकरी से छुट्टी पा लूँगी।बाल जब सफेद रेशों में तब्दील हो जायेगी,फिर क्या करूँगी? सारे अतीत को याद कर अपने कलम को धार देती रहूँगी।ख्वाबों की हँसी के साथ मेरी हँसी भी जब छत पर गूँजती है। आस पास की छतें हमें टेढ़ी आँखो से देखने में कतई गुरेज नही करती।
सर्द ऋतु में मेरी बड़ी दीदियाँ खूब हाथ से बनियान बुनती थी, परिवार के हर एक सदस्यों के लिए …मैं और मेरी छोटी बहिन ने शायद ही कभी बुना होगा। मुझे कॉमिक्स पढ़ने की बड़ी बुरी लत थी। छुप-छुप कर कॉमिक्स पढ़ने का नतीजा अब दिख लगा है।दिमागी घोड़ा एक जगह नही बैठता !😊 कूदता फांदता कभी सरपट भागता है, तो उसकी लगाम शब्दों से ही थामनी पड़ती है।
खैर..!


हल्की-हल्की ठंडी हवाओं के बीच बरामदे में अँगीठी अपनी एक धुन में जलती ।आस पास और पड़ोस की कुछ औरतें एवं मेरे मामाजी की बेटियाँ ऊन के गोलों से बतियाती हुई दीदी के घर आ जाती थी।मुझे ऐसा लगता था, मानो अब इन सबमें होड़ होगी कि कौन तेज बनियान बुनेगी ? ऊन की छोटी- छोटी आँखो में उलझी सलाइयाँ फन्दों पर नजरें गड़ाती तो कुछ देर गप्पें कही अटक सी जाती।
औरतों की गप्पें बाजी तो जग जाहिर है ही, रस
भरी बातों का स्वाद चखते हुए ऊन के फंदे भी आपस में उलझ जाते, लेकिन गप्पों की मजाल कि वो जरा ठहर जाय…नही जी !
बड़े दीदियों के ठहाकों के बीच हमारी टेढ़ी हँसी भी शामिल होती,पर कही ना कही मुझे बनियान बुनने की कला ना जानने का टीस भी होता।


जब बड़ी दीदी जीजाजी के साथ रहकर धारचूला में पढ़ाई करती थी। गुड़ की कटकी वाली चाय बनाकर मुझे ही उन्हें पिलानी होती थी।औरतों की बातें किस अंदाज की होती है,सुन भी लेती थी।
निवेश सूद के साथ ही वापस मिल जाता है।ये मरुन रंग की खूबसूरत बनियान छोटी दी ने अपनत्व के भाव से बुनकर दी है।उसे परसों जब पहना उसकी हाथों के पोर-पोर सी निकली ताजी प्रेम की गर्माहट में गजब की ऊर्जा समायी थी।


तप्त रंगों की महक इस कदर बिखर रही थी कि आस पास के घरों की छतों पर तारों में झूला झूल रही कपड़ो की कमर और गर्दनों में मोच तो आ ही गयी होगी।
अपनों का प्यार ख्वाबों को असरदार बना ही देती है।

किताबी रुप में मेरे ख़्वाबों को एक नया आकार मिलना,मेरे लिए सच में खूबसूरत बात है। कहानी संग्रह का शीर्षक है “धुला -धुला सा ख़्वाब”। प्रकृति के अनेक रंगों में गूँथी हुई इक्कीस कहानियाँ… कुछ कल्पनाओं और कुछ हक़ीक़त की दुनियां में सैर कराएंगी। पढना लिखना सबका अपना च्वॉइस है,कुछ सच्चे लोग अप्रिसिएट करेंगे तो कुछ नही करेंगे। सबको खुश करना संभव नही है।

 लेखन किसी को खुश करने की गरज से नही लिखा जाता। चाहे पढो या लिखो अपनी रचनात्मक ऊर्जाओं का सही इस्तेमाल करना भी तो सेवा ही है। घर में किताबों का होना बहुत मायने रखता है। अपनी तंग बुद्धि को हवा पानी मिलना जैसा होता है।लेखन यदि निःस्वार्थ भाव से किया जाता है तो वह लिखने वाले को ही नही…पढ़ने वालों को भी बहुत सकारात्मक और ऊर्जावान बनाता है। किसी ऐसे उद्देश्य से लिखना जिसमें पूर्व से ही नाम,दाम और शौहरत का आकलन हो…ऐसे लेखन पाठकों के हृदय को टच नही करती।

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