सर्दी तो बा.. बा.. हो,कम होने का नाम ही नही ले रहा। बहुत दिन से सोच रहा था कि मम्मी को क्या हो गया।
परकाया प्रवेश नही कर पा रही, शायद मैं ही उसकी रुह से कॉन्टैक्ट नही कर पा रहा। शायद इस बीच बढ़ते मेरे आलसपन से मम्मी थोड़ी ख़फ़ा तो नही…?नही…नही …मेरी मम्मी मुझसे ख़फ़ा कभी हो ही नही सकती. ! मैं एक दिन बुड्ढा भी हो जाऊँ न…तब भी… शर्त लगा लो।मेरी मम्मी मेरे साथ ऐसे ही रहेगी…जैसे अब तक रह रही है। उछल काट मचाने वाली…हल्ला काटने वाली..
जंगली बिल्ली जैसी..! मेरी प्यारी सी मम्मी, मुझे खूब प्यार करने वाली मम्मी…पापा से लड़ने वाली मम्मी, ददा को पापा के डांठ से बचा कर रखने वाली मम्मी..! बस ..
मैंने सुना है, जिन अंजान इंसानों की रुह पूर्व जन्मों से ही परिचित होती हैं।वही इस धरती में मिलते हैं।बात करते हैं। हमारा तो सदियों से ही एक -दूसरे से परिचय रहा होगा।तभी तो मेरी मम्मी, मेरे ददा और मेरे साँसों की गति से ही सारा माजरा समझ जाती है। लेकिन आज तो संडे है..न ..इस दिन तो मम्मी अपने घुँघराले बालों को खूब नारियल तेल पिलाती है। मुझे पियक्कड़ बालों को देखना बहुत ही अच्छा लगता है।
कोहरे के धुँध को हटाकर निकल आयी हल्की सी धूप में बिल्कुल भी गर्मी नही है, लेकिन धूप है भई…उसका भी तो अपना ठसक है, लुकाछिपी में माहिर धूप इन दिनों सबका चहेता बना फिर रहा है। मम्मी गीले बालों को सूखाने बरामदे में बैठ आती है, और हफ्ते भर के अखबार भी खोलकर बैठ जाती है।इस दिन वह अपने मोबाइल,अपनी आँखें और अंगुलियों को भी खूब रेस्ट देती है। आज सुबह वह बड़े ख़ुशमिजाजी वाले मूड़ में बैठी थी, उसे भी कुछ-कुछ, खटर-पटर करना अच्छा ही लगता है। कुछ दिन पहले वो पापा से कह रही थी-“कुछ लिखने का मूड़ भी नही हो रहा, क्या हो गया जाने…. मन ही उचट जा रहा।” मैं तो ज्यादा समझ नही पाता कि मम्मी का मन क्यों उचट जाता है। पता नही क्या-क्या अनोखे शब्द सुनता रहता हूँ… कि अर्थ नही पता…मैं भी सर्दियों में आलसी का बाप बन जाता हूँ। हाँ यार! काफी आलसी हो गया हूँ। हालाँकि होना नही चाहता, लेकिन मौसम का कसूर इतना है कि वह मुझे आलसी बना देता है। कम्बख़्त मौसम….!
सुबह नौ बजे तक स्कूल के लिए एकदम रेडी होना होता है। मम्मी तो बेचारी…सुबह से मुझे उठाते-उठाते कभी खुद ही दो मिनट आँखें झपका लेती है। मैं मम्मी को देखकर मन ही मन खूब मुस्कुराता हूँ। मुझे उस वक़्त मम्मी छोटी सी बच्ची लगती है। मैं उसे निहारता हूँ, कुछ कहना चाहता हूँ, किन्तु कह नही पाता। कोशिश करता हूँ …किन्तु मम्मी का न जाने कैसा दिल है और कैसा मन है -“कुछ कहा क्या ..?”वह झट से आँखें खोल मेरा माथा चूम कर पूछती है।
मैं हल्के से मुस्कुराता हूँ,और हल्के से गले की खराश से असहज सा महसूस करता हूँ।वो समझ जाती है।-“ओके, तो तुम्हें हॉट वाटर चाहिए।वन मिनट ओके..” वह भागकर जाती है। किचन से बड़े से दो कॉफ़ी मग और थर्मस में गर्म पानी भर लाती है। मेरे साथ- साथ वो भी गर्म पानी की हल्की -हल्की सिप लेती रहती है। बहुत सी आदतें हमारी अब एक सी हो गयी हैं।मैं फूडी बच्चा हूँ, लेकिन मम्मी फ़ूड के मामले में बहुत आलसी है।इसलिए नही कि वो स्लिम ट्रिम रहना चाहती है….नही..कतई नही। वो भी खाना तो शौक से ही खाती है। लेकिन कम..! मेरा तो मन करता है कि बस खाता ही रहूँ… खाता ही रहूँ… मन ही नही भरता।
शुक्रवार के दिन से ही माँ चहक-चहक कर ददा और पापा को बताते-बताते नही थक रही-“जानते हो,आभास से अपने पैरों के नाखून बड़े आसानी से कट करने दिया।” ये भी कोई बताने वाली बात है क्या…? मेरे लिए तो यह आम बात है।किंतु मम्मी और सबके लिए खास और बड़ी बात है। दरअसल आज में एडल्ट की उम्र में पहुँच गया हूँ मुझे याद ही नही आता कि मेरे पैर की बड़े-बड़े नाखून माँ कब काटती थी। मुझे तो नेल कटर देख कर ही डर लगता था। हाथ के नाखून भी बेहद मुश्किल से डर-डर कर आगे-पीछे, ऊपर-नीचे करते हुए माँ-पापा को इतना छकाता था कि उन्हें मेरा नाखून काटना भारी टास्क लगता था। उन्हें मेरे नाखून काटने के लिए भी बेहद योजना बनानी पड़ती थी। ये मान लो कि लगभग एक घण्टा उनका मैं यूँ ही जाया कर देता था। एकाध बार तो मम्मी ने मेरे गालों में चपत लगा दी थी। मुझे चपत खाना पसंद था नाखून कटाना नही..!और मेरे पैरों के नाखून देख कर मेरी मम्मी जिस तरह अपनी आँखों की साइज बढ़ा लेती थी।
माय गॉड..! मेरे तो रौंगटे खड़े हो जाते थे। मैं छत से,बरामदे से कूद कर नेल कटर से बचने का उपक्रम सोचता रहता था।परन्तु कुछ कर न पाता…अपने मम्मी-पापा और ददा के प्रेम भरे सख्त चंगुल में छटपटाता रहता। और मुझे पकड़ कर पैर के नाखून काटने का उनकी सारी प्लान फेल कर देता। मैं काफी ताकतवर हूँ। तीन चार को तो यूँ ही उड़ा देता हूँ।तीनों मनुष्य थक-हार जाते। ऐसा सालों से होता आ रहा था।फिर भी मेरे पैर के नाखून कुछ दिन बाद कटे होते थे। मैं आश्चर्य से सबको टकटकी लगाए रहता था। मेरे मुख पर सवालों के ढेर होते थे और मम्मी….मम्मी तो मम्मी ही ठहरी।मुस्कुराते हुए कहती -” तेरे पैर के नाखून बिल्ली खा जाती है,और कभी-कभी चूहे भी कुतर देते हैं।।” मैं सोचता था।चूहा तो हमारे घर में आता है, नही.. बिल्ली तो पड़ोस की चिल्लाती रहती है…! किस समय बिल्ली ने अंदर आकर मेरे पैर के नाखून कुतरे…?? आखिर माजरा है क्या…उफ! मेरे दिमाग की गुल बत्ती अब जलने लगी थी।मैं युवावस्था की ओर बढ़ने भी लगा हूँ।मजाक समझने लगा हूँ। मम्मी हर हफ़्ते मेरे हाथ-पैरों के नाखूनों की ऐसे निरीक्षण करती जैसे अत्यंत आवश्यक अपनी कोई पत्रावली !
स्कूल की मैडम से कहकर मेरा OT थेरेपी भी शुरू करवा दी।ताकि मेरा डर खत्म हो. ! पहले मुझे बाहर घुमाने,आइसक्रीम व चॉकलेट का लालच देकर नाखूनों को उड़ाने की साजिशें होती थी।महीनों की थेरपी के बाद कुछ असर जरूर हुआ।अब मैं हाथ के नाखून आसानी से कटवाने देने लगा। पैर का कटवाने से अब भी डरने लगा। मम्मी की आधी टेंशन तो दूर हो गयी थी।आधी अभी बची थी।मैं भी आधे टेंशन से मम्मी कैसे निजात पाती है. ? बिल्ली का ख़ौफ तो दिमाग में बैठा था ही…पैर के नाखून कब कटते हैं..वो बिल्ली वाला उपाय छुपकर देखने की हसरत भी बढ़ते जा रहा था। मम्मी संडे को मुझे दिन में सुला देती थी।और मैं तो फूडी हुआ ही….नींद भी कमाल का लेता हूँ।बिस्तर में लुढ़का नही कि उससे पहले ही नींद आ जाती है।बस मेरा नींद में जाना और मम्मी की नेल कटर का खुल जाना….एक दिन मेरी नींद टूट गयी और मैं घबरा गया।रात दिन मोजा पहन कर पैरों के तीखे नाखूनों को बचा कर रखने लगा।यहाँ तक कि भरी गर्मी में भी मोजा… मम्मी की परेशानी बढ़ जाती। कहीं खेलकूद में नाखूनों में चोट लग गया या नाखून टूट गया तो दर्द बहुत होगा। यह कह पापा को बड़े दया के भाव से देखती और कुछ-कुछ बुदबुदाती रहती।
सालों बाद बीते शुक्रवार को यह सब ड्रामा खत्म हुआ..! मेरे पैरों के नाखून कटवाने के लिए मम्मी ने हर वो जतन किया।जो हर माँ अपने बच्चों के लिए करती होगी।माँ ने मुझसे कहा-“देखो आभास अब तुम बड़े हो गए हो, फर्राटे से साइकिल चलाते हो, वेट लिफ्टिंग करते हो,मुझे ताज़्जुब होता है तुम एक नेल कटर से डरते हो..?क्या ऐसा भी होता …मुझे सचमुच विश्वास ही नही होता। लोग तो छिपकली से डरते हैं।कॉकरोच से डरते हैं …तुम नेल कटर से.”..लोहे का दो इंची औजार मुझे दिखाकर कहती है…”.देखो,तुम खुद अपना नेल कट करो।” मैंने औजार हाथ में लिया और एकाध बार खुद नेल कट करने की कोशिश की। नही हुआ। मेरा डर अब भी मेरी आँखों के सामने कोहरे सा धुँध बनकर आ रहा था।
मम्मी बोली(अपने पैर के नाखून काटते हुए)-“ये देखो…कट..कट कुछ नही होता, दो सेकंड भी नही लगता। बातों का न जाने कैसा असर हुआ मुझपर…मैंने आसानी से पैर के नाखून काटने दे दिया। जरा सा डर भी रहा था, लेकिन बातों का असर मेरे डर पर हावी होने लगा था।वाकई मुझे कुछ नही हुआ।झट से सारा नाखून साफ हो गया, पैर भी और मन भी हल्का-फुल्का सा लगने लगा।
ओहो! मम्मी कितनी खुश हुई कि बता नही सकता. ! थेरेपी का असर भी कहूँगा, मम्मी की सहनशक्ति का और उनकी बातों का कमाल भी कहूँगा। गुजरा हुआ शुक्रवार मेरे डर पर जीत और मम्मी की हँसी से गूँजता हुआ बीता। तब से लेकर अब तक मुझे पुचकार-पुचकार कर मेरे गालों को लाल पीला कर दिया है। -“मेरा आभास, मेरा बच्चा,तेरे सालों पुराने डर पर शानदार जीत हुई है। हम सब बहुत खुश हैं।” अपने को श्रेय न देकर हमारी मम्मी हमेशा दूसरों को ही श्रेय देती है।मेरे इस डर से निजात पाने पर वह OT, स्कूल और मुझे हर पल शाबासी दे रही हैं। लेकिन मैं अपने मम्मी पापा,ददा और स्कूल के प्रति प्रेम से भरा हुआ हूँ और हमेशा भरा ही रहना चाहता हूँ। मेरी मम्मी-पापा,ददा और मेरे टीचर्स को मेरा खूब प्यार!
सबको धन्यवाद !💐💐🙏💞