भावों की आजादी : हिंदी लेखन एवं कविताएं
हमने छुटपन में ही खुद को जीत लिया,अब अहसास हार का नही होता।
बहती नदी हैं हम,मौज में रहना जानते हैं।
Introduction
जिला पिथौरागढ़ के तहसील धारचूला स्थित सुदूर गाँव मोंगोंग (हिमखोला) के किसान दम्पति के घर 16 दिसम्बर को जन्मी,प्राइमरी शिक्षा गाँव में ही हुई।फिर धारचूला, दिल्ली,लखनऊ में अपने कैरियर के लिए संघर्षरत रही।जो मेरे आज उत्कृष्ट स्मृतियों में से एक है।
दो बेटों की माँ, गृहणी और सरकारी अफसर होना,बहुत ज्यादा जिम्मेदारियों के अहसास से भर देती है।।मैं खुद को भग्यशाली मानती हूँ कि इस ब्रह्मांड की अभूतपूर्व शक्ति ने मुझे ढेर सारी कार्यो को सफलतापूर्वक संपादित करने के लिए चुना,सो उस शक्ति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ।
सरकारी सेवा के इतर हमारा रुझान साहित्य में भी है किन्तु खुद को लेखक मानने में अभी मुझे वक़्त लगेगा। क्योंकि यह यात्रा हमने अभी-अभी शुरू की है।
2018 में हमारी एक कविता संग्रह प्रकाशित हुई है जो अपने छोटे दिव्यांग बेटे “आभास”के नाम से ही है। कोरोना काल में हमारी पहली उपन्यास “परछाई का घेरा” प्रकाशित हुआ।और हाल ही हमारी कहानी संग्रह “धुला-धुला सा ख़्वाब” प्रकाशित हुआ है।पहला उपन्यास को पाठकों ने खूब प्यार और आशीर्वाद दिया। यह पुस्तक 45 दिन में ही आउट ऑफ स्टॉक हो गया था। इस किताब का दूसरा संस्मरण भी आ गया।
जनजातीय समुदाय की महिला होने के कारण वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों और सामाजिक अवस्थाओं के विषय में हमेशा जानकारी रखने के प्रति सजग रहती हूँ। ग्रामीण क्षेत्र की ऐसे वंचित वर्ग की महिलाएं और बच्चे जो सपने देखने से भी डरते हैं,उन्हें सपने देखने के लिए प्रेरित करती हूँ।उनके अभावों की जिंदगी में सकारात्मक रुख अपनाने की कोई वैधानिक विधि मेरे पास नही है, किन्तु सरल हृदय की ताकत को महसूस कर उनमें सकारात्मक ऊर्जा संचारित करने की हर संभव प्रयास करती हूँ।
मानवीय होना वरदान है,तप है। संवेदनाओं का बचा रहना,पीढ़ियों को बचाएं रखना है।अतः हमने ब्लॉग लिखना शुरू किया है।
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रोज का सिलसिला है,दफ़्तर जाती हूँ,आती हूँ,आने-जाने के बीच जितनी अवधि शेष होती है,जिम्मेदारियों के बोझ को कुछ हल्का करती हूँ।जितनी हल्की होती जाती हूँ,दस्तूर